सुदामा पांडेय 'धूमिल'

सुदामा पांडेय 'धूमिल'

Saturday, July 9, 2011

तुम तो पाषाण थे ..............


वंशी थी बांस की किन्तु मुखर हो गई श्वास से मेरे

उठते स्वर ये नहीं, जो न हम पुकारते
होता क्या मान छिद्र जो न हम दुलारते
तेरी आराधना तेरा ही भर थी
मेरी यदि कामना न आरती उतारती
तुम तो पाषाण थे किन्तु बने इश्वर विश्वास से मेरे
वंशी थी बांस की किन्तु मुखर हो गई श्वास से मेरे

स्वर के आलाप को मुझसे ही छिनकर
तुमने है ढल दिया जगती के बीन पर
कर्मो के नृत्य में पद-गति को साधकर
सद् गति के बंधन में मुझको ही बंधकर
हंस हंस परिहास कर, खेले उल्लास भर लास से मेरे
तुम तो पाषाण थे किन्तु बने इश्वर विश्वास से मेरे
वंशी थी बांस की किन्तु मुखर हो गई श्वास से मेरे

दे दिया पराग कण हंसते से फूल को
मेरी इस धरती की मुठ्ठी भर धुल को
देखा विश्वास को तुमने जब, बोल पर
धरती के अंक में लिखते निर्माण तुम नाश से मेरे
तुम तो पाषाण थे किन्तु बने इश्वर विश्वास से मेरे
वंशी थी बांस की किन्तु मुखर हो गई श्वास से मेरे