सुदामा पांडेय 'धूमिल'

सुदामा पांडेय 'धूमिल'

Tuesday, March 22, 2011

डूबता हुआ सूरज बहुत कुछ कहता है

डूबता हुआ सूरज क्या कहता है.....शायद बहुत कुछ या कुछ भी नहीं.....या कुछ यू कहे की जो आप सुनना चाहते है वही कहता है. आप भी कभी कोशिश कीजियेगा उसको सुनाने का, समझाने का और उससे बात करने का. अच्छा लगेगा ऐसा मेरा विस्वास है .मेरा अनुभव कुछ अलग था पहली बार शायद मैंने उसे इतना करीब महसूस किया. मुझे वो बहुत उदास लगा और पता नहीं क्यों न चाहते हुए भी मैंने उसे सुना उसे समझाने की एक कोशिश किया. उसका डूबना बिलकुल बेचैन कर देने वाला पल था. इससे पहले न जाने कितनी बार वो डूबा होगा लेकिन आज उसका डूबना कुछ अलग था......शायद बिल्कुल अलग था.........



कोशों दूर बैठा मैं डूबते सूरज को देखता रहा
जैसे कुछ कह रहा हो -
आज दिन भर जला है वो,
सारा जिस्म लाल हो गया है
पर क्या तुमने कभी सूरज के लाल जिस्म को देखा है?
कोशों दूर बैठा मैं डूबते सूरज के घायल जिस्म को देखता रहा
मानो कुछ कह रहा हो!

बस कुछ ही पल बाकी है,
हाँ अब उसके अंदर वो आग नहीं रही
मै उससे आँखे मिला सकता हूँ
मै उसके डूबती नब्जों के आवाज को सुन सकता हूँ
पंखुडियां बंद करते फूलों के बुदबुदाहट में,
मै सुन सकता हूँ उसकी आखरी आवाज को
पर क्या तुमने कभी बिखरते सूरज की आह सुनी है,
कोशों दूर बैठा डूबते सूरज की आह को मै सुनता रहा,
जैसे कुछ कह रहा हो

सूर्यास्त से थोड़ी देर पहले उसके चेहरे पे इक हंसी थी
क्योकि बहुत दूर बैठे वो भी मुझे देख रहा था,
बिल्कुल आपनी तरह, एकदम शांत, चुपचाप लोगों से अलग
पर क्या तुमने कभी धलते हुए आदमी और
डूबते हुए सूरज को देखा है ?
कोशों दूर बैठे हम दोनों इक दुसरे को सुनते रहे
हाँ मै उसे सुनता रहा क्योकि -
डूबता हुआ सूरज बहुत कुछ कहता है !!

कोशों दूर बैठा मैं डूबते सूरज को देखता रहा
जैसे कुछ कह रहा हो !!