सुदामा पांडेय 'धूमिल'

सुदामा पांडेय 'धूमिल'

Thursday, May 21, 2009

Hi friend
This is my second post on the blog of 'THE GREAT HINDI POET DHOOMIL' this poem is taken from the SANSAD SE SADAK TAKl.

मुझसे कहा गया कि संसद
दे की धड़कन को
प्रतिबिंबित करने वाला दर्पण है
जनता को, जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है.
लेकिन क्या यह सच है?
या यह सच है कि
अपने यहां संसद - तेली की वह घानी है
जिसमें आधा तेल है और आधा पानी है
और यदि यह सच नहीं है
तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को
अपनी ईमानदारी का मलाल क्यों है?
जिसने सत्य कह दिया है
उसका बुरा हाल क्यों है?